सुखदा का चरित्र चित्रण - Sukhda ka Charitra Chitran

सुखदा का चरित्र चित्रण - Sukhda ka Charitra Chitran

सुखदा का चरित्र चित्रण - Sukhda ka Charitra Chitran

सुखदा का चरित्र चित्रण: सुखदा धनवान माता पिता की इकलौती पुत्री है। उसकी मां रेणुका देवी और पति अमरकांत है। अमरकांत के ऐश्वर्य और भोग की प्रवृत्ति का अमरकांत की त्याग प्रवृत्ति से समझौता नहीं हो पाता और वह उससे खिंचती चली जाती है। परन्तु अमरकांत के घर से चले जाने पर उसके यथार्थ चरित्र का विकास आदर्श की ओर क्रमशः होता है। वह अछूतों के मन्दिर में प्रवेश आन्दोलन में सफलता प्राप्त कर लोकप्रिय बन जाती है। इसके बाद गरीबों के लिए भूमि अर्जन हेतु आन्दोलन और हड़ताल का आयोजन करने के कारण जेल भी जाती है। जेल में वह साधारण कैदियों के साथ ही रहना पसन्द करती है, इस प्रकार यथार्थ से क्रमशः आगे बढ़ता हुआ आदर्श के चर्मोत्कर्ष पर पहुंचकर उसका चरित्र सर्वाधिक आकर्षक बन जाता है।

सुखदा कथानक के नायक अमरकांत की पत्नी है। प्रारंभ में प्रवृत्ति की भिन्नता के कारण उसके और पति के बीच में विरोध की खाई अवश्य कुद जाती है, परंतु धीरे -धीरे अमरकांत आदर्श की और बढ़ता है और अमरकांत की कर्मभूमि में कूदकर सुखदा उससे भी आगे निकल जाती है। वह हड़ताल और आंदोलन में जेल जाती है। अन्त में उद्देश्य की सफलता के साथ अमरकांत से उसका मिलन होता है। प्रारम्भ से लेकर अन्त तक प्रत्येक पात्र और प्रत्येक घटना उनसे प्रभावित रहती है। अतः वह कथानक की नायिका है।

'कर्मभूमि' में प्रेमचंद ने अन्य उपन्यासों की तरह सात्विक, तेजस्विता और कर्तव्यपरायणता जैसे आदर्शवादिता के आधार पर सुखदा के चरित्र की उदभावना की है। उसका चरित्र सामान्य धरातल से उठकर आदर्शवादिता के उच्च धरातल की और बढ़ता जाता है। सुखदा भारतीय नारी के आदर्श की प्रतिष्ठा करती है। वह भोग विलास का परित्याग कर कठोर एवं तपस्यापूर्ण जीवन अपनाती है और अपने त्याग एवं कर्तव्य परायणता से अपने पति अमरकांत के हृदय को जीत लेती है।

बड़े घर की बेटी होने के कारण सुखदा में भोग और ऐश्वर्य की प्रवृत्ति के कारण अमरकान्त से खिंचती अवश्य है, परंतु उसमें अमरकान्त की परिश्रमशीलता और सेवावृत्ति के अंकुर हैं। यही कारण है वह केस में फँसी मुन्नी का बचाव करती है। अमरकांत के घर छोड़ देने पर वह भी साथ ही जाती है। अपने स्वाभिमान के कारण सुखदा न तो मायके जाती है और न उसकी कोई सहायता लेती है। यह जीविका के लिए एक कन्या पाठशाला में पचास रुपया माह कि नौकरी कर लेती है।

सुखदा स्वार्थिनी नहीं है, स्वाभिमान और परिश्रमशीलता के साथ अपनों के साथ आत्मीयता और प्रेम का व्यवहार उसके चारित्र की प्रमुख विशेषता है। ससुर समरकान्त की बीमारी की खबर सुनकर वह बैचेन हो जाती है। वह अपने व्यस्त कार्यक्रम में भी प्रतिदिन समय निकालकर उनको खाना बनाकर खिला आती, अपनी ननद नैना से वह असीम प्यार करती है। अमरकान्त के घर छोड़ने पर नौकरानी सिल्लो और नैना उसके साथ आती हैं। आगे चलकर नैना उसकी तैयार की हुई कर्मभूमि में कूद कर अपना बलिदान देती है।

सुखदा में नारी गर्व की सहज भावना है। वह अमरकान्त के घर न चले जाने पर उसकी परवाह नहीं करती, क्योंकि उन्होंने उसकी अपेक्षा की थी। सकीना के प्रति अमरकान्त का प्रेम भी उसे कठोर बना देता है। ऐसी ही शंका वह अमरकान्त और मुन्नी के संबंध में करती है। परंतु सकीना और मुन्नी से यर्थाथ स्थिति मालूम हो जाने पर ग्लानि होती है और वह अमरकान्त की कर्मभूमि को अपनाने का संकल्प कर लेती है।

अमरकान्त की त्यागमयी कर्मभूमि को अपना कर सुखदा के चरित्र में नाटकीय परिवर्तन आता है। वह अछूतों को अपने आंदोलन से मन्दिर में प्रवेश दिलाती है। यहीं से वह नेता बन जाती है। उसका दूसरा कदम गरीबों के मकानों की जमीन के लिए मुनिसिपालिटी से होता है। आन्दोलन और हड़ताल कराने के जुर्म में उसे गिरफ्तार कर लिया जाता है। लाला समरकान्त के लाख प्रयत्न करने पर भी वह जमानत पर छूटने को तैयार नहीं होती और जेल चली जाती है। जेल में भी साधारण कैदियों के साथ ही रहना पसंद करती है और विशेष सुविधाओं को ठुकरा देती है। उसका आंदोलन सफल होता है। हर्षोल्लास के वातावरण में उसका अमरकान्त से मिलन होता है।

उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि सुखदा एक संघर्षमयी भारतीय नारी का आदर्श चित्र उपस्थित करती है। वह यथार्थ की भूमि से उठकर क्रमशः आगे बढ़ती हुई आदर्श के शिखर पर पहुंच जाती है। यही भारतीय नारी का उच्चतम आदर्श है। जिसके लिए प्रसाद जी ने लिखा है -

"नारी तुम केवल श्रद्धा हो ।

विश्व रजत नग पग तल में ।

पीयूष - स्रोत सी बहा करो । 

जीवन के सुंदर समतल में ।"

शामनाथ का चारित्रिक विश्लेषण कीजिए।

शामनाथ का चारित्रिक विश्लेषण कीजिए।

शामनाथ का चारित्रिक विश्लेषण कीजिए। 

शामनाथ चीफ की दावत कहानी के केंद्रीय पत्र हैं। शामनाथ का चरित्र एक स्वार्थी और कर्तव्यहीन व्यक्ति का है जो अपनी माँ को फालतू समझकर कहीं छिपाना चाहता है। इस लेख में शामनाथ के चरित्र की (चारित्रिक) विशेषताओं का विस्तार से वर्णन किया गया है। 

शामनाथ की चारित्रिक विशेषताएं

1) सामान्य मानव : चीफ की दावत कहानी परम्परित नायकत्व परंपरा से विद्रोह करती है। इसका मुख्य पात्र शामनाथ है। लेकिन वह नायक नहीं है। हम शामनाथ की खलनायक भी नहीं कह सकते। वह आधुनिकता और तरक्की की दौड़ में भागता हुआ आज का सामान्य मानव है। दुख यह है कि इस भागमभाग में शामनाथ ने अपने नैतिक मूल्य और सांस्कृतिक उदारता भुला दी है। शामनाथ आधुनिकता और तरक्की की दौड़ में भागता हुआ आज का सामान्य मानव है। वह माँ का पल-पल अपमान करने वाला, उसे बोझ समझने वाला अनुत्तरदायी और कृतघ्न पुत्र है।

2) कुपुत्र / कृतघ्न : एक चरित्र है माँ का - जिसने अपनी युवावस्था बेटे को पालने - पोसने-पढ़ाने में होम कर दी। जिसे कुछ बनाने के लिए अपने जेवर तक बेच डाले और दूसरा चरित्र है शामनाथ यानि बेटे का - जिसे न माँ का बैठना पसंद है और न सोना। माँ बैठती है तो कुर्सी पर पैर रख लेती है और सोती है तो जोर- जोर से खर्राटे लेने लगती है। उसके लिए माँ शर्म का विषय है। घर का फालतू सामान है। कूड़ा- करकट है। मेहमानों के आने पर उसे रात भर के लिए सहेली के यहाँ भेजा जा सकता है। कोठरी में बंद करकर बाहर से ताला लगाया जा सकता है।

3) महत्वाकांक्षी : शामनाथ महत्वाकांक्षी है। उसे तरक्की चाहिए। इस तरक्की के लिए वह कुछ भी कर सकता है। मूल्यातिक्रमण कर सकता है। नैतिक मानदंड भूल सकता है। माँ को अपमानित और आतंकित कर सकता है।

4) अवसरवादी : शामनाथ अवसरवादी, स्वार्थी और आत्मकेंद्रित व्यक्ति है। समय के साथ-साथ वह विधवा माँ के त्याग को भूल चुका है। वह क्यों याद रखे कि माँ ने गरीबी में आभूषण बेच - बेच कर उसे शिक्षित किया था और उसी के कारण आज वह अच्छी नौकरी पर तो है। अब उसकी जरूरत पदोन्नति है। पदोन्नति उसे अमेरिकी चीफ ही देगा। इसीलिए वह चीफ को दावत देता है और ऐसे अवसर पर माँ का बुढ़ापा उसे शर्मसार कर रहा है। अब उसके लिए माँ घर के फालतू सामान से भी गई -बीती है। उसे छिपाने का पूरा यत्न किया जाता है। यह यत्न तो सफल नहीं होता, लेकिन एक चमत्कार हो जाता है कि अमेरिकन चीफ माँ से प्रभावित हो जाता है। वह माँ को नमस्ते करता है, हाथ मिलाता है, माँ से टप्पे सुनता है और माँ की दस्तकारी के रूप में दिखाई गई फुलकारी में रूचि दिखाता है। वह माँ जिसके बारे में शामनाथ कहता था कि इसे भाई के यहाँ होना चाहिए, एकाएक उसकी जरूरत बन जाती है, अब माँ के कहने पर भी उसे हरिद्वार नहीं भेजता, क्योंकि माँ को साहब के लिए फुलकारी बनानी है और साहब देखने भी आ सकते हैं कि माँ कैसे फुलकारी बनाती है।

Who was the Political Guru of Gopal Krishna Gokhale?

Who was the Political Guru of Gopal Krishna Gokhale?

Who was the Political Guru of Gopal Krishna Gokhale?

Gopal Krishna Gokhale was a prominent Indian political leader and social reformer during the Indian Independence Movement. He was a disciple of Mahadev Govind Ranade, a renowned social reformer and scholar. Ranade was Gokhale's teacher and mentor, and he had a profound influence on Gokhale's life and work.
Who was the Political Guru of Gopal Krishna Gokhale?

Ranade was a great scholar of Indian history, culture, and religion. He was also an advocate of social reform and was a leader in the Indian National Congress. He was a strong advocate of women's rights and education, and he was instrumental in the establishment of the Widow Remarriage Association.

Ranade was a great teacher and mentor to Gokhale. He taught Gokhale about Indian history, culture, and religion, as well as the importance of social reform. He also encouraged Gokhale to pursue his political ambitions and to become an active member of the Indian National Congress. Ranade's teachings and guidance had a profound impact on Gokhale's life and work, and he is credited with helping to shape Gokhale's political views and ideals.

FAQs:

Q: What were Gokhale's contributions to the Indian Independence Movement?

A: Gokhale was a prominent political leader and social reformer during the Indian Independence Movement. He was a strong advocate of education and political reform, and he worked tirelessly to improve the lives of ordinary Indians.

Q: What was the Widow Remarriage Association, and what role did Ranade play in its establishment?

A: The Widow Remarriage Association was a social reform organization that aimed to promote the remarriage of widows, who were traditionally ostracized in Indian society. Ranade was instrumental in the establishment of the association and was a strong advocate for women's rights and education.

Q: How did Ranade influence Gokhale's political views and ideals?

A: Ranade was a great teacher and mentor to Gokhale, and he taught him about Indian history, culture, and religion, as well as the importance of social reform. He also encouraged Gokhale to pursue his political ambitions and become an active member of the Indian National Congress. Ranade's teachings and guidance had a profound impact on Gokhale's political views and ideals.

एकेकाचे स्वभाव मराठी निबंध - Aikekache Swabhav Marathi Nibandh

एकेकाचे स्वभाव मराठी निबंध - Aikekache Swabhav Marathi Nibandh

एकेकाचे स्वभाव मराठी निबंध - Aikekache Swabhav Marathi Nibandh

विविधतेची निसर्गात लयलूट असते. दगड, पशू, पक्षी, झाडेझुडपे, फळेफुले.... त्यातही रूप, गंध, रंग यांची किती विविधता.... विविधता हा निसर्गाचा आत्माच !.... माणसांचंही असंच आहे. “पिंडे पिंडे मतिर्भिन्ना !" माणसांचे स्वभाव किती वेगवेगळे !!.... चांगला आणि वाईट असेच खरे तर विभाजन होईल.

दुसऱ्याचं दु:ख पाहून कष्टी होणारे, सर्वांचं कल्याण चिंतणारे, संत चांगले तर दुसऱ्याचं दु:ख पाहून आनंदी होणारे, दुसऱ्याचं वाईट चिंतणारे, जुलमी, पीडा देणारे वाईट.... उमदा, कोता, दिलदार, कुजका, दुष्ट, प्रेमळ, रागीट, गोड, लाघवी, बडबड्या, घुम्या, उधळ्या, कंजूष, मानी, लुब्रा, वेंधळा, करडा, विसराळू.... स्वभावाच्या किती परी! 

मृत्यूलाही ओशाळायला लावणारा संभाजी मानी तर औरंगजेबाच्या हातावर तुरी देणारा शिवाजी धोरणी, तलवार गाजवणारा पहिला बाजीराव धाडसी तर जेवणावळी गाजवणारा दुसरा बाजीराव आळशी, पळपुटा, . प्रश्नाला उत्तर म्हणून प्रश्नच विचारणारा व. पु. काळ्यांच्या गोष्टीतला जोशी भांडखोर तर पैशाची व रूपाची श्रीमंती असूनही गरीब साध्या इंदूशी आणि लेखकाशी मैत्रीचा धागा राखणारा पु.लं.चा नंदा प्रधान वरून कोरडा पण अंतर्यामी हळवा,... करून सवरून 'तो मी नव्हेच' म्हणून सर्वांना टोप्या घालणारा अत्र्यांचा लखोबा लोखंडे बेरकी तर स्मरणासाठी उपरण्याला गाठी मारणारा व कुठली गाठ कशाची, ह्याचेच विस्मरण होणारा गडकऱ्यांचा गोकुळ विसरभोळा.... 'दुरितांचे तिमिर जावो' म्हणत जगणारा बाळ कोल्हटकरांचा दिगू - 'साधा, सरळ, भोळा...' तर श्री.ना. पेंडशांचा 'गारंबीचा बापू' अफाट.... जग हे माणसांच्या स्वभावांचं म्युझियमच !

'स्वभावो दुरतिक्रमः ।' 'स्वभावाला औषध नाही' असं म्हणतात. जन्मतः आपण तसे असतो का ? स्वभावाला वारसा असतो का ? कसं शक्य आहे ? मग स्वभावांची घराणी झाली असती ! 'सूर्यापोटी शनी' आले नसते. “घटाघटाचे रूप आगळे, प्रत्येकाचे स्वभाव वेगळे" 

हेच दिसते. परिस्थिती, संस्काराने स्वभाव घडत वा बिघडत जातात. एकदा का ते पक्के झाले की “वळणाचे पाणी", "कुत्र्याचे शेपूट", "मूळ स्वभाव जाईना" म्हणतात. ... कृती, सवयी, गुण, अवगुण यांची स्वभावाशी सांगड घालतात. मूलतः सारे एका माणसात असतेच. म्हटलंच आहे

“वाईट आणि चांगला। 

स्वभाव असे आपला॥

कधी एक दिसतो। 

दुसरा लपून असतो। 

माणूस इथेच फसतो॥" 

कृती कधी कधी स्वभावाविरुद्ध असते. सवयी अनुकरणप्रियतेने येतात त्या बदलतातही!... स्वभाव हा अनेक गुणावगुणांचा गुच्छ असतो. ज्याचं प्रमाण जास्त तो त्याचा स्वभाव म्हटला जातो. दुष्ट, क्रूर, वाईट दरोडेखोराच्या मुलांना त्यांचा बाप प्रेमळच वाटतो. 

मला तुसड्या वाटणारा तुम्हाला सडेतोड, बाणेदार वाटतो. दिलदार हा बावळट, भोळासांब वाटतो. दिलदार, हौशी, आनंदी, मानी, मिळून उमदा स्वभाव होतो. तसा अनेक गुणांचा समुदाय एका स्वभावाच्या पोटी असतो. परिस्थिती किंवा संस्कार ही एका मर्यादेपर्यंतच त्याला कारणीभूत होतात. मूळ स्वभाव त्या पलीकडचा आहे.

'स्वभावो न उपदेशेन कर्तुम् अन्यथा।

सुतप्तस्य अपि पानीयं पुनर्गच्छति शीतताम्॥'

Download Aadhar Card: A Comprehensive Guide for Indian Residents

Download Aadhar Card: A Comprehensive Guide for Indian Residents

Download Aadhar Card: A Comprehensive Guide for Indian Residents

As an Indian resident, it is important to have a government-issued identification document that proves your identity and residency. One such document is the Aadhar card, which is a unique 12-digit number issued by the UIDAI (Unique Identification Authority of India) to every individual who enrols for it. The Aadhar card not only serves as a proof of identity, but also as a proof of address and a valid photo ID.

Download Aadhar Card: A Comprehensive Guide for Indian Residents

What is Aadhar Card and Why is it Important?

The Aadhar card is a biometric identification document that stores personal information of an individual, such as name, date of birth, address, photograph, and biometric data such as fingerprints and iris scan. This information is stored in the UIDAI database and can be accessed by authorized government agencies for various purposes such as subsidies, pensions, and government schemes.

The Aadhar card is important because it provides a single and unique identification number for an individual, which can be used for various purposes such as opening a bank account, getting a mobile phone connection, and availing government benefits. Additionally, it also helps in curbing corruption and leakages in government schemes by ensuring that the benefits reach the intended beneficiaries.

How to Download Aadhar Card

There are several ways to download the Aadhar card, and in this guide, we will be covering the following methods:

  1. Download Aadhar Card Online
  2. Download Aadhar Card through mAadhar App
  3. Download Aadhar Card through UIDAI Website

Download Aadhar Card Online

To download the Aadhar card online, you need to have a registered mobile number, as an OTP (One Time Password) will be sent to your mobile number for authentication. Follow these steps to download your Aadhar card online:

  1. Visit the UIDAI website (https://uidai.gov.in)
  2. Click on the ‘Get Aadhar’ tab on the homepage
  3. Select the ‘Download Aadhar’ option
  4. Enter your 12-digit Aadhar number or 28-digit enrolment ID
  5. Enter your full name, pin code, and image captcha
  6. Click on the ‘Get One Time Password’ button
  7. Enter the OTP received on your registered mobile number
  8. Your Aadhar card will be displayed on the screen, which you can download and take a printout of

Download Aadhar Card through mAadhar App

The mAadhar app is a mobile application developed by UIDAI that enables you to carry your Aadhar card on your mobile phone. You can also use the app to download your Aadhar card by following these steps:

  1. Download and install the mAadhar app from the Google Play Store or Apple App Store
  2. Register your mobile number on the app
  3. Enter your 12-digit Aadhar number and verify your identity using the OTP received on your registered mobile number
  4. Your Aadhar card will be displayed in the app, which you can download and take a printout of

Frequently Asked Questions

  1. What if I don’t have my Aadhar number or enrolment ID?

If you do not have your Aadhar number or enrolment ID, you can retrieve it by clicking on the ‘Retrieve Lost UID/EID’ option on the UIDAI website. You will be required to enter your full name, email address, and mobile number to retrieve your Aadhar number or enrolment ID.

  1. What if I haven’t received my Aadhar card yet?

If you have enrolled for Aadhar but have not received your Aadhar card yet, you can check the status of your Aadhar card by visiting the UIDAI website and clicking on the ‘Check Aadhar Status’ option.

  1. What if my personal details on my Aadhar card are incorrect?

You can update your personal details on your Aadhar card by visiting the UIDAI website and clicking on the ‘Update Aadhar’ option. You will be required to fill in the necessary details and provide relevant documents for verification.

Conclusion

In conclusion, downloading your Aadhar card from the UIDAI website is a simple and straightforward process. By following the above steps, you can easily download your Aadhar

शतरंज पर निबंध - Essay on Chess in Hindi

शतरंज पर निबंध - Essay on Chess in Hindi

शतरंज पर निबंध - Essay on Chess in Hindi

शतरंज पर निबंध - शतरंज विश्व के सबसे पुराने खेलों में से एक है। यह एक बोर्ड गेम है। शतरंज का खेल दो खिलाडियों के बीच खेला जाता है। इस खेल में प्रत्येक खिलाडी के पास 16 गोटियां होती हैं क्रमशः एक राजा, एक रानी, दो ऊंट, दो हठी, दो घोड़े और आठ प्यादे। प्रत्येक गोटी की शतरंज के खेल में विशेष खूबियां होती है। जिनका प्रयोग विरोधी राजा को मात देकर विजय हासिल करने में किया जाता है। 

शतरंज पर निबंध - Essay on Chess in Hindi

शतरंज खेलने के फायदे

शतरंज सिर्फ एक खेल ही नहीं बल्कि मानसिक व्यायाम भी है। शतरंज खेलने से मनुष्य में रणनीति बनाने, धैर्य और संयम जैसे गुणों का विकास होता है। जो लोग नित्य शतरंज खेलते हैं अधिक एकाग्रता और कुशल यादाश्त देखने को मिलती है। 

शतरंज का इतिहास

शतरंज का प्रारंभिक संस्करण, जिसे चतुरंग के रूप में जाना जाता है, 8x8 वर्गों के एक बोर्ड पर खेला जाता था और इसमें एक सेना के चार भाग शामिल होते थे: हाथी, घोड़े, रथ और पैदल सैनिक। समय के साथ, शतरंज के नियम औरगोटियां विकसित हुईं, जिससे शतरंज का आधुनिक संस्करण सामने आया जिसे हम आज जानते हैं।

शतरंज में प्रत्येक मोहरे की अपनी अनूठी चाल और क्षमताएं होती हैं, और खेल का लक्ष्य इन मोहरों का उपयोग अपने प्रतिद्वंद्वी को मात देने और उनके राजा को मात देने के लिए करना है। ऐसा करने के लिए, खिलाड़ियों को रणनीति बनाते हुए चाल चलनी चाहिए और अपने प्रतिद्वंद्वी की चालों का अनुमान लगाना चाहिए। शतरंज का खेल में कुछ ही मिनटों में जीत या हार भी हो सकती है, लेकिन कभी कभी यह खेल घंटों तक भी चलता है।

निष्कर्ष :

शतरंज ने तेजी से दुनिया भर में लोकप्रियता हासिल की और संस्कृति और बौद्धिक उपलब्धि का प्रतीक बन गया। पूरे इतिहास में, शतरंज को कला, साहित्य और लोकप्रिय संस्कृति में चित्रित किया गया है, और यह सभी उम्र और पृष्ठभूमि के लोगों द्वारा पसंद किया जाने वाला एक प्रिय खेल बना हुआ है। आज, शतरंज पूरी दुनिया में खेला जाता है, और कई अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंट और प्रतियोगिताएं होती हैं, जिनमें ग्रैंडमास्टर्स और विश्व चैंपियन शामिल होते हैं।

पूस की रात कहानी की भाषाशैली - Poos ki Raat Kahani ki Bhasha Shaili

पूस की रात कहानी की भाषाशैली - Poos ki Raat Kahani ki Bhasha Shaili

Poos ki Raat Kahani ki Bhasha Shaili : इस लेख में मुंशी प्रेमचंद द्वारा रचित कहानी 'पूस की रात' की भाषाशैली का वर्णन किया गया है। 

पूस की रात कहानी की भाषाशैली - Poos ki Raat Kahani ki Bhasha Shaili

पूस की रात कहानी की भाषाशैली - भाषा 'पूस की रात' प्रेमचंद की अत्यंत प्रौढ़ रचना मानी जाती है। यह कहानी जितनी कथ्य और प्रतिपाद्य की दृष्टि से महत्वपूर्ण है, उतनी ही भाषा और शैली की दृष्टि से भी। यह कहानी ग्राम्य जीवन पर आधारित है। लेकिन प्रेमचंद की आरंभिक कहानियों में जिस तरह का आदर्शवाद दिखाई देता था, वह इस कहानी में नहीं है। इसका प्रभाव कहानी की शैली पर भी दिखाई देता है। प्रेमचंद ने इस कहानी में अपने कथ्य को यथार्थपरक दृष्टि से प्रस्तुत किया है इसलिए उनकी शैली भी यथार्थवादी है । प्रेमचंद की कहानियों की भाषा बोलचाल की भाषा के नजदीक है। उनके यहाँ संस्कृत, अरबी, फारसी आदि भाषाओं के उन शब्दों का इस्तेमाल हआ है जो बोलचाल की हिंदी के अंग बन चुके हैं। प्रायः वे तद्भव शब्दों का प्रयोग करते हैं। वे कहानी के परिवेश के अनुसार शब्दों का चयन करते हैं, जैसे ग्राम्य जीवन से संबंधित कहानियों में देशज शब्दों, मुहावरों तथा लोकोक्तियों का अधिक प्रयोग होता है। वाक्य रचना भी सहज होती है। लंबे और जटिल वाक्य बहुत कम होते हैं । प्रायः छोटे और सुलझे हुए वाक्य होते हैं ताकि पाठकों तक सहज रूप से संप्रेषित हो सके।

‘पूस की रात‘ कहानी ग्रामीण जीवन से संबंधित है। इसलिए इस कहानी में देशज और तद्भव शब्दों का प्रयोग अधिक हुआ है। 

तद्भव शब्द : कम्मल, पूस, उपज, जनम, ऊख।

देशज शब्द : हार, डील, आले, धौंस, खटोले, पुआल, टप्पे, उपजा, अलाव, दोहर। 

तद्भव और देशज शब्दों के प्रयोग से कहानी के ग्रामीण वातावरण को जीवंत बनाने में काफी मदद मिलती है। लेकिन प्रेमचंद ने उर्दू और संस्कृत के शब्दा ें का भी प्रयोग किया है।उर्दू के प्रायः ऐसे शब्द जो हिंदी में काफी प्रचलित है, ही प्रयोग किए गए है। जैसे, खुशामद, तकदीर, मजा, अरमान, खुशबू, गिर्द , दिन, साफ, दर्द, मालगुजारी आदि।